अंतरभारती के उपासक: डॉ. सुनीलकुमार लवटे

विख्यात साहित्यकार डॉ. सुनीलकुमार लवटे के नागरिक अभिनंदन समारोह के अवसर पर 

डॉ. सुनीलकुमार लवटे एक बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं. उनके कृतित्त्व के विभिन्न पहलू पाए जाते हैं. वे अपने आप में एक कृतिशील विश्वविद्यालय हैं जिसका कई शाखाओं में विकास हुआ है. उनका जीवन ही नहीं तो लेखन भी बहुआयामी है. उन्होंने हिंदी और मराठी में विपुल लेखन किया है. लेखक, संपादक, आलोचक, अनुवादक, समीक्षक के साथ वे कुशल शिल्पी भी है. उनकी कई रचनाओं के भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुए हैं. उनका साहित्य कई विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम हेतु लगाया हैं. उनकी समीक्षात्मक पुस्तकें संदर्भ ग्रंथ के रूप पढ़ी जाती है. कई शोध छात्र उनके साहित्य पर अनुसंधान कर रहे हैं. मराठी भाषा और साहित्य में वे सुपरिचित हैं. यहाँ हिंदी भाषा और साहित्य में उनके योगदान को रेखांकित करना आवश्यक लगता है.

डॉ. लवटे जी ने सन 1971 से मिडल स्तर से अपना अध्यापन कार्य शुरू किया. सन 1979 में पेंशन मिलनेवाली सुरक्षित नौकरी छोड़कर वे महावीर महाविद्यालय, कोल्हापुर में हिंदी के प्राध्यापक बन गए. सन 1980 से 2010 तक उन्होंने शिवाजी विश्वविद्यालय में पदव्युत्तर स्तर पर हिंदी का अध्यापन कार्य किया. प्राध्यापक बनते ही उन्होंने अनुसंधान करने की ठान ली. इस काल में वे एक साथ कई मोर्चे पर जूझ रहे थे. वे हिंदी के ख्यातलब्ध लेखक यशपाल के साहित्य पर पीएच. डी. हेतु अनुसंधान करने लगे. उनका अनुसंधान महज टेबल वर्क नहीं था तो इसके लिये वे सीधे लखनऊ में यशपाल के घर पहुँचे. यशपाल के साहित्य पर उन्होंने किया अनुसंधान हिंदी सहित्य में उल्लेखनीय है. इसके पश्चात तो हिंदी साहित्य का अध्ययन और अनुसंधान उनका निदिध्यास ही बन गया. उन्होंने 15 छात्रों को एम. फिल. हेतु तो पांच छात्रों को पीएच.डी. हेतु मार्गदर्शन किया है. विविध जिम्मेदारियाँ संभालते हुए उन्होंने जो हिंदी की सेवा की वह उल्लेखनीय है. और उनका सृजन कार्य आज भी उसी गति से अविराम जारी है 

लवटे सर सही रूप में हिंदी के आचार्य रहे हैं. उन्होंने मिडल से लेकर पीएच. डी. तक हिंदी का अध्यापन किया है. उन्होंने हिंदी के अध्ययन और अध्यापन में नवीनता लाने हेतु निरंतर प्रयास किए. विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में एक प्रश्नपत्र विशेष लेखक का होता है. सर यह लेखक नया और समकालीन हो इसके प्रति आग्रही रहते. इसीके तहत उन्होंने शिवाजी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शंकर शेष, हरिशंकर परसाई, राजेंद्र यादव, मैत्रेयी पुष्पा, गोविन्द मिश्र जैसे कई नये हिंदी लेखकों को पाठ्यक्रम में लगाया. इतना ही नहीं तो इन लेखकों को उन्होंने कोल्हापुर में बुलाया. लेखक और छात्र-अध्यापकों से संवाद का आयोजन किया. उन्होंने लंबे समय तक हिंदी के प्रचार और प्रसार का कार्य किया. इस दौरान उन्होंने अज्ञेय से लेकर नामवर सिंह जैसे हिंदी के साहित्यकार और आलोचकों को आमंत्रित किया. सर समारोह में अक्सर वार्तालाप और संवाद पर बल देते रहे. कई साहित्यकारों के प्रकट साक्षात्कारों का उन्होंने आयोजन किया. उन्होंने एक बार नाटककार शंकर शेष को पाठ्यक्रम में लगाया और शंकर शेष पर कोई समीक्षात्मक जानकारी न होने के कारण बवाल शुरू हुआ. ऐसे में सर ने महज कुछ दिनों में काफी कष्ट उठाकर ‘नाटककार शंकर शेष’ इस संदर्भ ग्रंथ को तैयार किया. एक बार विश्विद्यालय के पाठ्यक्रम में शाहू महाराज के बारे में पाठ रखने की चर्चा चल रही थी और हिंदी में शाहू महाराज पर कोई कहानी या पाठ उपलब्ध नहीं हो रहा था. ऐसे में सर ने महज चार-पांच दिनो में ‘वेद का अधिकार’ कहानी लिखी जो शिवाजी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में लगाई गई.

हिंदी भाषा के प्रचार और प्रसार में उनका अहं योगदान रहा है. अहिंदी भाषी छात्र और अध्यापकों के लिए उन्होंने यथासमय हिंदीतर नवलेखक शिविर, त्रिभाषा सूत्र परिषद, बहुभाषी काव्य सम्मेंलन, राष्ट्रीय छात्र एकात्मकता शिविर, अनुवाद कार्यशाला तथा संगोष्ठियों का आयोजन किया है.

हिंदी भाषा के समीक्षक के रूप में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है. वे भारतीय भाषाओं में जो स्तरीय और अच्छा है उसे अपनी भाषा में लाने का और अपनी भाषा का जो श्रेष्ठ है उसे हिंदी भाषा में पहुँचाने का कार्य उदात्त उद्देश्य से करते रहे हैं. हिंदी भाषा और साहित्य में घटित हर अद्यतन घटना और विचार से वे जुड़े रहते हैं. उनकी समीक्षा हर किसी को अंतर्मुख करनेवाली होती है. उन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को लेकर सैकड़ों की संख्या में हिंदी और मराठी में लेख लिखे हैं. उनकी ‘भारतीय भाषा और साहित्य’, ‘भारतीय साहित्यकार’, ‘समकालीन साहित्यिक’ ये पुस्तकें इसका प्रमाण है. ‘नाटककार शंकर शेष’(1982), ‘यशपाल-एक समग्र मूल्यांकन’ (1984) ‘शेवड़े: व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व’(1986) ये ग्रंथ उल्लेखनीय रहे हैं. उन्होंने ‘हिंदी वेब साहित्य’ विषय पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से एक बृहत शोध परियोजना पूरी की है. जिसे ‘हिंदी वेब साहित्य’ (2013) शीर्षक से राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. हिंदी में इस विषय पर किया गया यह पहला मौलिक कार्य है. हिंदी भाषा और साहित्य की विभिन्न वेबसाइट पर किया गया यह एक महत्त्पूर्ण अनुसंधान है. इसमें कंप्यूटर की विकास यात्रा, वेबसाइट और पोर्टल का निर्माण आदि की बुनयादी जानकारी है. इससे हिंदी की क्षमता और और उसके नए उभरते स्वरूप को भी रेखांकित किया है. यह पुस्तक हिंदी के विश्वभाषा रूप को प्रस्तुत करती है.

डॉ. लवटे जी का साहित्य के प्रति देखने का अपना नजरिया है. वे साहित्य को समाज परिवर्तन का माध्यम मानते हैं. हिंदी और मराठी में जो-जो उपेक्षित रहा उस पर उन्होंने कलम चलाई है. साने गुरुजी की अंतरभारती अवधारणा उनकी प्रेरणा है उनके लेखन एवं संपादन में संस्कृति का शाश्वत विचार, पठन-संस्कृति के संरक्षण का संकल्प तथा समाज के निर्माण हेतु निरंतर प्रयास पाया जाता है. वे अपने कार्य से समाज का शिक्षक बनने का संदेश देते है. 

डॉ. सुनीलकुमार लवटे जी का संपादक के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने यथाप्रसंग कई पुस्तकों का हिंदी और मराठी में संपादन किया है. स्वयं से परे देखने के लिए संपादन में दृष्टि और सामाजिक चेतना की आवश्यकता होती है. इसमें तथ्यात्मकता, निष्पक्षता, संतुलन संदर्भों की खोज, दूसरों के विचारों को समाज तक पहुंचाने की कोशिश होती है. लवटे जी ने इस संदर्भ में किया संपादन कार्य उल्लेखनीय है. उन्होंने ‘समाजसेवा’ त्रैमासिक का लगभग पांच वर्षों तक संपादन किया है. कॉमरेड गोविन्द पानसरे के श्रमिक प्रतिष्ठान के उपक्रम के अंतर्गत उन्होंने दर्जनभर पुस्तिकाओं का संपादन किया है. बालभारती, पुणे बोर्ड, विश्वविद्यालय के हिंदी अध्ययन मंडल में उन्होंने लंबे समय तक कार्य किया है. ‘हरिशंकर परसाई की कहानियां’, ‘हरिशंकर परसाई के निबंध’, ‘गद्य के रंग’, ‘काव्य अभिलाषा’, ‘वाणिज्य व्यवहार’, ‘व्यावहारिक हिंदी’, ‘गद्य सुमन’ आदि कई पुस्तकों का उन्होंने संपादन किया है। 

उन्होंने पूरे देश में तथा विदेशों में भी यथाप्रसंग कई व्याख्यान दिए हैं. कोल्हापुर, सांगली’ पुणे, नाशिक, सोलापुर आकाशवाणी से उनके कई भाषण और साक्षात्कार प्रसारित हुए है. उन्होंने कई देशों की अध्ययन यात्राएँ भी की है. उनकी आत्मकथा ‘खाली जमीन वर आकाश’ का गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है. हिंदी में उनकी आत्मकथा का ‘नेम नॉट नोन’ शीर्षक से अनुवाद प्रकाशित हुआ है. हिंदी पाठक और समीक्षकों ने इसकी सराहना की है. 

सर एक अच्छे अनुवादक ही नहीं तो अनुवादकों के मार्गदर्शक हैंl उन्होंने खांडेकर की कहानियों का ‘वि. स. खांडेकर की श्रेष्ठ कहानियां’(1983) तथा ‘शांति’ (1997) इन संग्रहों का हिंदी में अनुवाद किया है. इसके साथ ही खांडेकर के अधूरे उपन्यास ‘स्वप्नभंग’ को पूरा कर उसका हिंदी में अनुवाद किया है. डॉ. गोविंद पानसरे के पुस्तिका का ‘राजर्षि शाहू व्रत और विरासत’ (2012) शीर्षक से उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया हैं. प्रेमचंद के ‘साहित्य का उद्देश्य’ निबंध का मराठी भाषा में अनुवाद किया है. कॉमरेड पानसरे विविध कार्यक्रमों का आयोजन करते थे. इनमें लवटे सर साहित्यिक मोर्चे पर अगुआ रहे. कार्यक्रम के अनुसार हिंदी और मराठी के सेतु को जोड़ने का अनूठा कार्य उन्होंने किया है.

उनको अक्सर लगता हैं मराठी का अमुक हिंदी में जाना चाहिए. उनके अपने लेखन और अनुसंधान के चलते यह असंभव होता है. ऐसे में उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से महाराष्ट्र में हिंदी अनुवादकों की एक नई पीढ़ी का निर्माण हुआ है. डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद उन्होंने अपने छात्रों से कहा कि डॉक्टर के विचार भारतवर्ष में पहुँचाना ही उनके प्रति सही श्रधान्जली होगी. सर के इस आवाहन पर उनके छात्रों ने डॉ नरेंद्र दाभोलकर के समग्र साहित्य का हिंदी में अनुवाद किया राजकमल प्रकाशन ने इन पुस्तकों को प्रकाशित किया है. इसी प्रकार उन्होंने हमसे हमीद दलवाई के भी समग्र साहित्य का हिंदी में अनुवाद करवा लिया है. उन्हींके प्रयास से हाल ही में महर्षि विठ्ठल रामजी शिंदे की पुस्तक हिंदी में प्रकाशित हुई है. इसमें व्यवसायिकता के बजाय सामाजिक सरोकार को केंद्र में रखा है. सर अनुवादक का नाम मुखपृष्ठ पर आना चाहिए इसके लिए पहले से आग्रही रहे जो आज हो रहा है. इन अनुवादकों को प्रति पन्ने के हिसाब से मानदेय दिया जाता है. पुस्तक पर अनुवादक के रूप में अनुवादक का नाम दिया जाता है. कोरोना काल में इस परियोजना के तहत कई छात्रों को रोजगार मिल गया और हिंदी में एक महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ. इसीके चलते डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, महाराजा सयाजीराव गायकवाड, हमीद दलवाई आदि के समग्र साहित्य का हिंदी अनुवाद कार्य पूरा होकर इस कड़ी में लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हुई है. सर स्वयं इन परियोजनाओं में मार्गदर्शक और प्रधान संपादक रहे हैं.

अब तक उनकी मराठी और हिंदी 75 पुस्तकें में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें उनके लेखन, अनुवाद और आलोचना के लिए भारत सरकार से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है. उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, महाराष्ट्र साहित्य परिषद के भीमराव कुलकर्णी कार्यकर्ता पुरस्कार और महाराष्ट्र राज्य उत्कृष्ट साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने महाराष्ट्र में कई संग्रहालयों का निर्माण किया। उनकी पुस्तकों के हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी में अनुवाद हुए हैं। ‘वि.स. खांडेकर की श्रेष्ठ कहानियां’ इस अनुवाद को केंद्रीय हिंदी निदेशालय का हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार प्राप्त हुआ है. हिंदी सेवा के कारण उन्हें हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया है. हाल ही में उन्हें मराठी और हिंदी में सौहाद्र निर्माण करने के उपलक्ष्य में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का सौहार्द सम्मान घोषित किया है. इस अवसर पर भी उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा है, “यह संयुक्त कार्य के लिए एक व्यक्तिगत पुरस्कार है. मेरे छात्रों ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ के समग्र साहित्य का हिंदी अनुवाद किया. इनमें से 25 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इससे मराठी और हिंदी भाषाओं में सद्भावना निर्माण करने का कार्य किया गया. इस पुरस्कार के माध्यम से मैं उत्तर प्रदेश सरकार को इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए बधाई देता हूँ. इस पुरस्कार के लिए मै सारा श्रेय अनुवादक छात्रों को देता है.” ऐसे विनम्र अंतरभारती के उपासक को सादर नमन!

- डॉ.गिरीश काशिद, बार्शी
g.r.shkash.d7@gma.l.com  
(लेखक, श्रीमान भाऊसाहेब झाडबुके महाविद्यालय, सोलापूर में हिंदी विभाग के अध्यक्ष है.)

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Comments:

गिरीश काशिद

डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर की सभी पुस्तकें राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से प्राप्त होगी तथा महाराजा सयाजीराव गायकवाड के हिंदी खंड महाराजा सयाजीराव गायकवाड चरित्र साधने समिति औरंगाबाद से प्राप्त होंगे। विट्ठल रामजी शिंदे की पुस्तक भी राजकमल से प्राप्त होगी। नीचे आपको दोनों प्रकाशकों के पते प्रेषित कर रहा हूं। Head Office (Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd, New Delhi) Address: 1-B, Netaji Subhash Marg, Daryaganj, New Delhi - 110002 (India) महाराजा सयाजीराव गायकवाड की पुस्तकें हेतु इस नंबर पर संपर्क करें बाबा भांड सर +91 98817 45604

सत्येंद्र सिंह

डॉ गिरीश काशिद जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद। पच्चीस पुस्तकें कैसे मिल पाएंगी इसके लिए मार्गदर्शन प्रदान करें। सत्येंद्र सिंह,से नि वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी,मध्य रेल, सप्तगिरी सोसायटी जांभुलवाडी रोड आंबेगांव खुर्द पुणे 411046 मो 9922993647 आपसे बात करके बहुत प्रसन्नता होगी।

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