बड़ी नम्रता से...

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तुमसे
की नफ़रत, क्रोध और
बँटवारों में कब तक जियोगे?
क्या तुम्हें कभी दीवारों की दरारों से खिलता
वो नन्हा पत्ता नज़र नहीं आता?
या तुम देखना नहीं चाहते
की किसी भी प्यार भरी आँखों में
वो हिम्मत है जो तुमने चुने
हथियारों में भी नहीं है शायद?

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तुमसे
के कौनसा डर है जो तुम
छिप जाते हो इन नकाबों के पीछे?
कौनसा खौफ़ है जो तुम
चिपक जाते हो हमेशा बंदूकों, तलवारों के दामन से?
इंसानों के मरने से सवाल नहीं मरते
क्या ये तुम्हें नजर नहीं आता ?
या तुम देखना नहीं चाहते
की इन सब से भी तो क़नाअतें नहीं मिलती तुम्हें?

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तुमसे
की वो कौनसे अनुभव तुम्हें मिलें
जो तुम सबकों अलग अलग करना चाहते हो?
क्या तुम्हें नज़र नहीं आता
कि इससे तुम दरअसल
खुद को तनहा कर रहे हो?
या फिर तुम देखना नहीं चाहते
कि इतनी नफ़रतों के बावजूद भी
हम तुम्हें तनहा नहीं छोड़ते ?

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तुमसे
की क्यों तुम खुदको
इंसान के रूप में नहीं देख पाते?
क्या तुम्हें नज़र नहीं आता कि
तुम्हें अच्छा होने के लिए
धर्म, जाती, पैसा, दहशत जैसे
बैसाखियों की जरूरत नहीं ?
या फिर तुम देखना नहीं चाहते की
झुठी बातों पर बनी तुम्हारी प्रतिमा
संभालते संभालते दरअसल तुम खुद थक चुके हो?

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तूमसे
की वो कौनसे जज़्बात हैं जो तुम्हें
ये मानने से रोकते हैं
कि तुम और मैं केवल इंसान है और कोई नहीं ?
क्या तुम्हें नज़र नहीं आता कि
तुम में ज़ोश तो बहुत है मगर दिशा नहीं ?
या फिर तुम देखना ही नहीं चाहते कि
जोश में जलाई पुँछ लेकर तुम दरअसल लंका में नहीं इस वक़्त अयोध्या में दौड़ रहे हो ?

बड़ी नम्रता से मैं
जानना चाहती हूँ तुमसे
की कहीं एक बार भी तुम्हारें दिल में
रुकने का ख़याल आये तो
क्या तुम खुद से गले मिलकर खुद को माफ करोगे ?
तब शायद तुम्हें नज़र आ जायें की
गलतियां इंसानों से ही होती है और
शायद तुम देखना चाहों की
नफ़रत से नहीं बल्की
मोहोब्बत से ही माफ किया जा सकता है,
मोहोब्बत से ही इंसाफ किया जा सकता है...
...मोहोब्बत से ही।

- दिपाली अवकाळे
deepaliawkale.25@gmail.com

('नकाबो के पीछे' इस अल्बम से)

Tags: poem poetry deepali awkale बडी नम्रता से दीपाली अवकाळे protest poetry literature कविता हिंदी कविता साहित्य ऑडिओ audio Load More Tags

Comments: Show All Comments

Nakul kate

सुंदर, अप्रतिम..... प्रेमाला उपमा नाही ते देवा घरचे देणे आणि प्रेम हे असं एकमेव औषध आहे की ज्याला expiry date नसते.

अमन मुल्ला

वाह, खूपच मनाला भिडणारी कविता...

Mohasin Shaikh

वाह सुंदर अतिसुदर शब्द रचना भावुक झाले मन

संगीता देशमुख

वाह खूपच छान..

चेतन साळुंखे

वाह अप्रतिम.... गांधीजींची आठवण देऊन गेली आपली हि कविता.

Nivrutti Sinalkar

घर से निकले तो वीराना थे सामने देखा तो कबरस्थान थे चलते चलते पैरो तले दबी कुछ हड्डीया ऊन हड्डियों के ये बया थे अरे वो चलनेवाले जरा संभाल कर चल किसी जमाने मे हम भी इन्सान थे ! साधना साप्ताहिक के माध्यम से आपने जो इस कविता के माध्यम से लोगो के दिलो मे मोहब्बत के लिए जलाने का प्रयास किया है ऊस प्रयास के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !

Nilesh Thakare

खूपच सुंदर आणि वास्तविक स्थितीला संबोधित करणारी कविता...

Monika shertate

Nehmich arthpurn shabd, bhavna tyatun Kavita....khupch sundar...

Monika shertate

Nehmich arthpurn bhavna, tyatun Kavita..khupch sundar ...

Sunder. Chan lihila ahes Deepali

Khupach sunder.

Rajesh Chavhan

Khup chan madam, Manal tuck karun geli hi kavita.

Naina anil patkar

Badi namrata se...... in credible

SURESH DIXIT

Aprateem shabd yojna,. Arth, vichar vgr... Sarhysthitichi. Sundar Kavita.

Add Comment